Vandna Tete
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1952 से 2014 तक हुए देश के 16 आम चुनावों में अब तक कुल 41 आदिवासी महिलाएं सांसद बनी हैं। कांग्रेस से 29, बी जे पी से 6, सी पी आई, टी डी पी, तृणमूल, एन सी पी, वाई एस आर कांग्रेस से एक और बीजू जनता दल से एक।
देश की पहली निर्वाचित आदिवासी महिला सांसद बनने का गौरव बोनिली खोंगमैन को है। खासी समुदाय की खोंगमैन 1952 की पहली लोकसभा में ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट असम से संसद पहुंची थी। खोंगमैन 1946 से 1952 तक विधायक, असम विधानसभा की उपाध्यक्ष, और असम पब्लिक सर्विस कमीशन की पहली महिला अध्यक्ष भी रही।
वहीं, देश में राज्यसभा की पहली आदिवासी महिला सांसद चुनी जाने का श्रेय उरांव समुदाय की एंजेलीना तिग्गा को है। एंजेलीना, 1952 में झारखंड पार्टी की टिकट पर राज्यसभा सांसद बनी थी।
1957 की दूसरी लोकसभा में कोई भी आदिवासी महिला लोकसभा नहीं पहुंच सकी थी। जबकि, 1962 की तीसरी, 1977 की छठी और 2004 की चौदहवीं लोकसभा में सिर्फ एक एक आदिवासी महिला संसद पहुंच पाई।
भद्राचलम, भारत की एकमात्र ऐसी लोकसभा सीट है, जहां से सात बार आदिवासी महिलाएं सांसद चुनी गईं। कांग्रेस की टिकट पर 1967 की चौथी (1967), 1971 की पांचवीं, 1977 की छठी, 1980 की सातवीं, 1989 की नवीं और 1991 की दसवीं में। जबकि, टी डी पी से 1999 की तेरहवीं लोकसभा में।
देश में सबसे ज्यादा और लगातार चार बार लोकसभा पहुंचने वाली एकमात्र आदिवासी महिला सांसद हैं बी. राधाबाई आनंद राव। इन्होंने 1967 से 1980 तक भद्राचलम संसदीय सीट से चार बार प्रतिनिधित्व किया।
लोहरदगा (झारखंड) सीट से सुमति उरांव लगातार तीन बार सांसद रही हैं। 1980 की सातवीं, 1984 की आठवीं और 1989 की नवीं लोकसभा में।
रायगढ़ लोकसभा से कुमारी पुष्पा देवी सिंह भी तीन बार संसद पहुंची। 1980 की सातवीं, 1984 की आठवीं और 1991 की दसवीं लोकसभा में।
वे आदिवासी महिलाएं, जो दो बार सांसद बनीं, उनमें भद्राचलम से कमला कुमारी कर्रीईदुला 1989 और 1991 में। सुंदरगढ़ से फरीदा तोपनो 1991 और 1996) में। मयूरभंज से सुशीला तिरिया भी 1991 और 1996) में। जबकि बैतुल से ज्योति धुर्वे 2009 और 2014 में।
रायगढ़ लोकसभा सीट ने 4 बार आदिवासी महिलाओं को लोकसभा में भेजा है। चौथी लोकसभा 1967, सातवीं 1980, आठवीं 1984 और दसवीं लोकसभा 1991 में।
सवाई माधोपुर, राजस्थान और लोहरदगा, झारखंड ने तीन बार आदिवासी महिलाओं को सांसद बनाया है। 1996, 1998 और 1999 में।
कोरापुट, शहडोल, मयूरभंज और सुंदरगढ़ लोकसभा क्षेत्रों ने दो दो बार आदिवासी महिलाओं को संसद तक पहुंचाया है।
उत्तर-पूर्व से अब तक केवल चार आदिवासी महिलाएं ही सांसद बनी हैं। 1952 की पहली, 1991 की दसवीं, 1998 का बारहवां और 2004 के चौदहवे आम चुनाव में।
70 सालों के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी से सांसद बनने वाली एकमात्र आदिवासी महिला कुमारी किम गंगते हैं। ये आउटर मणिपुर से सी पी आई प्रत्याशी के रूप में 1998 के बारहवें लोकसभा के लिए निर्वचित हुई थीं।
उत्तर-पूर्व से सबसे पहले 1952 में आदिवासी महिला संसद में पहुंची। लेकिन, 1957 की दूसरी लोकसभा खाली रही। 1962 की तीसरी लोकसभा में मध्य प्रदेश के झाबुआ से और 1967 की चौथी संसद में दक्षिण के भद्राचलम से आदिवासी महिला ने संसद में पैर रखा।
कोरापुट सीट ने उड़ीसा से किसी आदिवासी महिला को पहली बार सांसद 1971 में बनाया। जबकि झारखंड ने 1980 की सातवीं लोकसभा में लोहरदगा से पहली बार आदिवासी महिला को संसद में भेजा। वहीं, राजस्थान के सवाई माधोपुर से आदिवासी महिला की उपस्थिति 1996 की ग्यारहवीं लोकसभा में दर्ज हुई। तो, दाहोद गुजरात से पहली आदिवासी महिला 2009 की पंद्रहवीं लोकसभा में पहुंची। और महाराष्ट्र ने आदिवासी महिला के लिए संसद का दरवाजा नंदुरबार सीट से 2014 की सोलहवीं लोकसभा में खोला।
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