Skip to content
May 19, 2025
  • Twitter
  • Facebook
  • Instagram
  • Youtube
Adivasi First Nation

Adivasi First Nation

Untold Indigenous Adivasi News and Views

Primary Menu
  • Home
  • News
    • Political
    • राजनीतिक
  • History
    • इतिहास
  • Literature
    • साहित्य
    • किताब
    • Books
    • भाषा
    • Language
  • Culture
    • संस्कृति
    • समाज
    • Society
    • कला
    • Art
  • Cinema
    • सिनेमा
  • Sports
    • खेल
  • Adivasidom
    • आदिवासियत
Live
  • Home
  • हिंदी
  • इतिहास
  • जब राष्ट्रपति वीवी गिरी एक आदिवासी से हार गए
  • इतिहास
  • राजनीति

जब राष्ट्रपति वीवी गिरी एक आदिवासी से हार गए

सन 60 के अंतिम दशक में हुई थी यह घटना। हालांकि उस समय वी. वी. गिरी राष्ट्रपति नहीं बने थे। लेकिन तब भी वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे और 1952 -57 की पहली नेहरू सरकार में लेबर मिनिस्टर रह चुके थे। 1957 में उन्होंने आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम तालुका के आदिवासी नेता डिप्पला डोरा सूरी को हराने की जबरदस्त कोशिश की थी। पर दो साल की कोशिशों के बाद भी वे उसे हरा नहीं सके। भारत के राजनीतिक इतिहास का यह अनोखा किस्सा है जिसमें एक भावी राष्ट्रपति एक आदिवासी से हार गया था।
toakhra December 28, 2021 1 min read

AK Pankaj

akpankaj@gmail.com

बात आज से 62 साल पहले की है। 20 मई 1959 का दिन था, जब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई थी। क्योंकि उस दिन, वीवी गिरी बनाम डिप्पला सूरी डोरा केस का फैसला आने वाला था। उस समय वीवी गिरी कांग्रेस के एक बहुत दबंग नेता थे, जो ब्रिटिश समय से ही महत्वपूर्ण राजनैतिक पदों पर रहे थे। 1947 से 1951 तक वे श्रीलंका में भारतीय राजदूत थे, और देश के पहले नेहरू मंत्रीमंडल में 1952 से 57 तक वे केंद्रीय लेबर मिनिस्टर थे। जिस दिन सुप्रीम कोर्ट उनकी याचिका पर फैसला देने वाला था, उस दिन वे भारत की राजनीति में सबसे प्रभावशाली राज्य उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे। जबकि, जिसके खिलाफ केस था, वह आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम तालुका के सारिकी गांव का एक आम आदिवासी था। जाहिर है कि केस मामूली नहीं था, और वह एक ऐसे राजनेता से संबंधित था, जो मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाला कांग्रेसी मसीहा के रूप में प्रतिष्ठित था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा, उसे जानने से पहले, वीवी गिरी बनाम डिप्पला सूरी डोरा केस पर नजर डालना जरूरी है। आखिर, जो राजनेता राजदूत और सेंट्रल लेबर मिनिस्टर रह चुका था, और उस समय उत्तर प्रदेश का गवर्नर था, उसका एक मामूली आदिवासी के साथ किस बात को लेकर लफड़ा था?

कहानी यह थी, कि 1957 के आम चुनाव में वीवी गिरी, उस मामूली आदिवासी से पार्वतीपूरम लोकसभा की सीट हार गए थे। जबकि, चुनाव से पहले माननीय गिरी महोदय, नेहरू सरकार में सेंट्रल लेबर मिनिस्टर थे। वह हार वे पचा नहीं पा रहे थे। क्योंकि, एक तो हार का अंतर बहुत मामूली था। सिर्फ 565 वोट। दूसरी बात थी कि उनके जैसा एक धाकड़ ब्राह्मण नेता, जो पैदा होता ही राज करने के लिए है, वह एक जंगली, असभ्य, मूर्ख माना जाने वाला आदिवासी से हार गया था।

1957 का चुनाव आजाद भारत का दूसरा आम चुनाव था। जो 25 फरवरी से 19 मार्च के बीच हुआ था। आंध्र प्रदेश की पार्वतीपूरम लोकसभा सीट डबल मेम्बर वाली कंस्टीचुएंसी थी। इसमें एक सीट जेनरल कैटेगरी की, और दूसरी एस टी के लिए रिजर्व थी। जहां से वेटरन लीडर वीवी गिरी जेनरल कैटेगरी में और बी सत्यनारायण डोरा एस टी कैटेगरी के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार थे। डिप्पला सूरी डोरा और वी कृष्णामूर्ति नायडू सोशलिस्ट पार्टी से खड़े थे। 19 मार्च 1957 को वोटों की गिनती के बाद बी सत्यनारायण डोरा एस टी कैटेगरी और डिप्पला सूरी डोरा, जेनरल कैटेगरी के अंतर्गत विजयी घोषित किए गए। नतीजतन वीवी गिरी हार गए, जो उनकी प्रतिष्ठा के लिए बहुत बड़ा सदमा था।

इस सदमे से उबरने के लिए उन्होंने तुरंत, यानी 16 अप्रैल 1957 को एक चुनावी याचिका (चुनाव याचिका सं. 83/1957) दायर कर दी। जिसमें कहा गया था कि डिप्पला सूरी डोरा ने एस टी कैंडीडेट के रूप में नोमिनेशन दाखिल किया था, इसलिए जेनरल सीट से हुआ उनका निर्वाचन शून्य माना जाए। दूसरा आरोप था, कि चुनाव के समय वे हिंदू धर्मावलंबी क्षत्रिय हो चुके थे, इसलिए एसटी के रूप में उनका नोमिनेशन गलत था।

खैर, यह तो न्यायिक प्रक्रिया थी जिसे लंबा चलना था। और अंत में क्या फैसला आएगा यह भी अंधेरे में था। तब उनको सदमे से उबारने के लिए कांग्रेस ने, याचिका दायर करने के दो महीने बाद, 10 जून 1957 को उन्हें उत्तर प्रदेश का गवर्नर बना दिया। फिर भी, एक आदिवासी से हार जाने की टीस, उनके दिल में लगातार चुभती रही।

चुनाव ट्रिब्यूनल ने याचिका में डिप्पला सूरी डोरा पर वीवी गिरी द्वारा लगाए गए आरोपों को स्वीकार कर लिया। तब विजयी आदिवासी डोरा, ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट चले गए। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को पलटते हुए डोरा का निर्वाचन बरकरार रखा (स्पेशल अपील नं. 4 ऑफ 1957/13 मार्च 1958)। इसके बाद वीवी गिरी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे।

गिरी महोदय ने, जो उस समय गवर्नर थे, और देश के भावी राष्ट्रपति थे, यह सोचा था कि एक आदिवासी भला कैसे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेगा। और पहुंचेगा भी, तो वे अपने उच्च वर्गीय जातीय हैसियत, और राजनीतिक प्रभाव से वहां उसको हरा ही देंगे। लेकिन, आदिवासी डिप्पला डोरा कहां हार मानने वाले थे। वह भी सुप्रीम कोर्ट में डट कर खड़े हो गए।

फिर तो सुनवाई चली। जबरदस्त चली। और, अंत में 20 मई 1959 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला (Appeal (civil) 539 of 1958/20 May 1959) सुनाया। पांच जजों की बेंच ने कहा, कि आदिवासी और दलित लोग, रिजर्व सीटों के अलावा जेनरल कैटेगरी से भी चुनाव लड़ सकते हैं। जहां तक डिप्पला डोरा सूरी के हिंदू क्षत्रिय होने की बात है, तो वह तथ्यात्मक नहीं है। वे आदिवासी हैं, और विधि सम्मत तौर पर पार्वतीपूरम की जेनरल सीट से निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं।

Read in English

Please Share and Support

Tags: 1957 का आम चुनाव अश्विनी कुमार पंकज आदिवासी संघर्ष आंध्र प्रदेश इंडीजिनस इतिहास डिप्पला डोरा सूरी पार्वतीपूरम चुनाव भारत रत्न भारतीय लोकतंत्र में आदिवासी राष्ट्रपति वी. वी. गिरी सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट

Continue Reading

Previous: महिला आदिवासी सांसदों का इतिहास
Next: भारत का पहला आदिवासी जनप्रतिनिधि दुलु मानकी

Related Stories

भारत का पहला आदिवासी जनप्रतिनिधि दुलु मानकी
1 min read
  • इतिहास
  • राजनीति

भारत का पहला आदिवासी जनप्रतिनिधि दुलु मानकी

December 28, 2021
महिला आदिवासी सांसदों का इतिहास
1 min read
  • राजनीति
  • हिंदी

महिला आदिवासी सांसदों का इतिहास

December 27, 2021
भूमि के मालिकाना हक पर हुआ आजाद भारत का पहला आदिवासी जनसंहारः चंदवा-रूपसपुर
1 min read
  • इतिहास

भूमि के मालिकाना हक पर हुआ आजाद भारत का पहला आदिवासी जनसंहारः चंदवा-रूपसपुर

December 9, 2021
जोहार. आदिवासी फर्स्ट नेशन भारत के आदिवासी और देशज समुदायों के समाचार-विचार का खुला व निर्भीक मंच है। इसको चलाने में आप सभी से रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा है।

Johar. Adivasi First Nation is an open and fearless platform for news and views of the Adivasis and indigenous communities of India. We look forward to creative support from all of you in running this digital platform.
Donate ₹ 25 to 100 only

www.adivasidom.in/all-courses/
उत्कृष्ट, पठनीय, संग्रहणीय और विचारोत्तेजक आदिवासी और देशज किताबों को खरीद कर आदिवासियत के वैचारिक आंदोलन को सहयोग दें.
www.jharkhandiakhra.in

You may have missed

Poems of Sushma Asur
5 min read
  • Literature

Poems of Sushma Asur

December 28, 2021
India’s First Elected Adivasi MLC from a General Seat in 1921
4 min read
  • History
  • Politics

India’s First Elected Adivasi MLC from a General Seat in 1921

December 28, 2021
भारत का पहला आदिवासी जनप्रतिनिधि दुलु मानकी
1 min read
  • इतिहास
  • राजनीति

भारत का पहला आदिवासी जनप्रतिनिधि दुलु मानकी

December 28, 2021
Adivasis of Tea Gardens in Indian Cinema
5 min read
  • Film

Adivasis of Tea Gardens in Indian Cinema

December 28, 2021
  • Home
  • News
  • History
  • Literature
  • Culture
  • Cinema
  • Sports
  • Adivasidom
  • Twitter
  • Facebook
  • Instagram
  • Youtube
Copyright © All rights reserved. | MoreNews by AF themes.